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वैश्या के साथ रहने पर 3-7 साल की जेल, वैश्यावृत्ति करने से पहले नियम पढ़े, होटल 3 महीने के लिए सील हो जाएगा!

 Immoral Traffic (Prevention) Act, 1956, व्यापार निवारण अधिनियम के मुख्य प्रावधान




स्वतंत्रता के बाद भारत में वेश्यावृत्ति को दंडनीय अपराध बनाया गया तथा वेश्यावृत्ति को रोकने हेतु अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 भारत की संसद द्वारा बनाया गया। वेश्यावृत्ति या अनैतिक शारीरिक व्यापार प्राचीन व्यवसाय के रूप में अपनी पहचान रखता है। संपूर्ण विश्व में महिला एवं पुरुष वेश्या द्वारा सामाजिक पर आर्थिक मान्यताओं के कारण इस जीवन शैली के व्यवसाय को अपनाया जाता है।

भौतिकता वादी जीवन शैली संपन्न आधुनिकता ने अनैतिक व्यापार की प्रवृत्ति को और भी बढ़ावा प्रदान किया है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति के ग्राहक के लिए इस व्यवसाय के माध्यम से अनैतिक व्यापार का बाजार उपलब्ध है। मानव अधिकार मौलिक अधिकार से आदर्श शब्दों की अवधारणाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने हेतु विधायिका का ध्यान दीर्घकालिक सामाजिक कुरीति पर नियंत्रण लगाने की ओर गया।

भारत के संविधान में गरिमामय प्रतिष्ठा के जीवन का उल्लेख अपनी प्रस्तावना में किया है भारत के सभी नागरिकों को जीवन प्रदान करने का अवसर दिया है यदि किसी व्यक्ति द्वारा अपने शरीर का व्यवसाय किया जा रहा है यौन क्रियाओं हेतु अपने शरीर को किसी अन्य व्यक्ति को धन के बदले एक के बदले सौंपा जा रहा है तब इस स्थिति में गरिमा सिद्धांत की अवहेलना होती है-

भारत की संसद द्वारा 1956 में स्त्री तथा लड़की अनैतिक परिवर्तित किया गया था इसे अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956 कर दिया गया।


अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956 के मुख्य प्रावधान।

अधिनियम का विस्तार संपूर्ण भारत पर है। इस अधिनियम की धारा 2 के अनुसार कुछ परिभाषाएं प्रस्तुत की गई हैं। उन्हें आलेख में प्रस्तुत किया जा रहा है। कुछ ऐसे महत्वपूर्ण शब्द है जिन्हें इस अधिनियम में विशेष रुप से परिभाषित कर दिया गया है जो इस प्रकार है।

वेश्यागृह (धारा 2 क )

अधिनियम की धारा दो वेश्याग्रह के अंतर्गत कोई घर कमरा, सवारी या स्थान अथवा किसी घर कमरे या सावरी या स्थान का कोई प्रभाग अभिप्रेत है जिसका प्रयोग अन्य व्यक्ति के अभिलाभ के लिए अथवा दो या दो से अधिक वेश्याओं के पारस्परिक अभिलाभ के लिए लैंगिक शोषण या दुरुपयोग के प्रयोजनों के लिए किया जाता है।

यदि एक व्यक्ति द्वारा अपने घर में अपनी संबंधी महिला से वेश्यावृत्ति कराई जाती है तो उस घर को वेश्याग्रह कहा जाएगा परंतु अकेली महिला अपने स्वयं के घर को वेश्यावृत्ति हेतु उपयोग करती है तो उस भवन को वेश्याग्रह नहीं कहा जाता है।

गौरव जैन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया एआईआर 1997, उच्चतम न्यायालय 3021 के प्रकरण में कहा गया है वेश्यागृह के चलाने का आरोप सिद्ध करने हेतु आवश्यक नहीं है कि वेश्यावृत्ति में निरंतर रूप से कोई व्यक्ति संलिप्त हो।


वेश्यागृह चलाए जाने का प्रमाण देने हेतु यह सिद्ध किया जाना आवश्यक नहीं होता है कि लोगों द्वारा उक्त स्थान का प्रयोग लगातार किया जाता रहा है। मात्र एक बार प्रयोग किए जाने पर भी सबूत संपोषित होने पर वेश्यागृह चलाना कहा जा सकता है।

वेश्यावृत्ति (धारा 2 च)

अधिनियम की धारा 2 के अनुसार वेश्यावृत्ति से व्यक्तियों का वाणिज्य प्रयोजनों के लिए लैंगिक शोषण या दुरुपयोग अभिप्रेत है और वेश्या पथ का तदनुसार अर्थ लगाया जाएगा। वह महिला/व्यक्ति जो वाणिज्य प्रयोजनों धन हेतु व्यापार अपने शरीर का शोषण या दुरुपयोग करने देती है वेश्या कहलाएगी।


उच्चतम न्यायालय के निर्णय के आलोक में वेश्यावृत्ति का अर्थ किसी स्त्री द्वारा किराया भाड़ा धन प्रतिफल के बदले में अपने शरीर को स्वेच्छा लैंगिक समागम या मैथुन हेतु प्रस्तुत करना है। वेश्यावृत्ति किसी स्त्री द्वारा स्वयं के शरीर को प्रतिफल हेतु लैंगिक समागम के लिए प्रस्तुत करके की जा सकती है अथवा किसी अन्य के शरीर को प्रस्तुत करके भी की जा सकती है।

इसका उल्लेख भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा एक प्रकरण में किया गया है। इसका अर्थ का यह हुआ कि वेश्यावृत्ति करने हेतु आरोपी का स्वयं कार्य में लिप्त होना आवश्यक नहीं है वह किसी अन्य स्त्री महिला को वेश्या के रूप में प्रस्तुत या प्रयोग करके भी वेश्यावृत्ति करने का दोषी हो सकता है।

वेश्या (धारा 2 च)

इस अधिनियम में वेश्या शब्द को विशेष रूप से परिभाषित नहीं किया गया है परंतु धारा 2 (च) में वेश्यावृत्ति को परिभाषित करने के उपरांत कहा गया है कि वेश्या पद का तदनुसार अर्थ लगाया जाएगा अन्वय के आधार पर निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि-

स्त्री/व्यक्ति जो वाणिज्य प्रयोजनों अर्थात प्रतिफल स्वरूप धन प्राप्ति हेतु व्यापार सदृश गतिविधि द्वारा अपने शरीर का दैहिक शोषण या दुरुपयोग होने देती है स्वयं के शरीर को लिखित समाधान हेतु प्रस्तुत करती है वेश्या कहलाएगी।

अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि,

ऐसी स्त्री को कहा जाता है जो भाड़े हेतु मैथुन या लैंगिक समागम हेतु अपने शरीर को प्रस्तुत करती है वेश्या कहे जाने हेतु यह सिद्ध किया जाना आवश्यक है कि आरोपित स्त्री द्वारा।

स्वेच्छा से स्वयं मैथुन हेतु लैंगिक समागम हेतु।

धन समान किसी प्रतिपल के लिए।

अपने शरीर को किसी पुरुष के समक्ष समर्पित या प्रस्तुत किया गया।

किसी महिला की समाज में खराब छवि के कारण उसे वेश्या शब्द से संबोधित नहीं किया जा सकता। यदि परिस्थितियां ऐसी हो कि किसी महिला या कन्या के निवास स्थान पर देर रात तक पुरुषों का आवागमन बना रहता है तो मात्र इस आधार पर उस स्थल को वेश्यागृह तथा महिला को वेश्या नहीं कहा जा सकता। किसी स्थान को वेश्यागृह कहलाने हेतु धारा 2(क) के आवश्यक तत्वों की पूर्ति आवश्यक होगी। इस प्रकार एक महिला तब ही वेश्या कहलाएगी जब वह-

स्वेच्छा से अपने शरीर को किसी पुरुष के समक्ष समर्पित या प्रस्तुत करती है तथा ऐसा वह मैथुन लैंगिक समागम हेतु करती है तथा अन्य समर्पित या प्रस्तुत किए जाने हेतु प्रतिफलस्वरूप धन के समान कोई अन्य वस्तु प्राप्त करती है।

उदाहरण एक महिला एक पुरुष के समक्ष मैथुन हेतु स्वयं को स्वेच्छा प्रस्तुत करती है तथा वह पुरुष से ₹1000 या सोने की अंगूठी या कोई अन्य वस्तु लेती है, इस काम को वेश्यावृत्ति तथा महिला को वेश्या कहा जाएगा।

केरल राज्य के एक मामले में कहा गया है कि अधिनियम के अंतर्गत वर्णित वेश्यावृत्ति के अपराध हेतु पुरुष ग्राहक किसी स्त्री के साथ लैंगिक संभोग करता हुआ पाया जाना आवश्यक नहीं है। धारा स्पष्ट करती है कि किसी स्त्री या कन्या द्वारा धन या वस्तुएं धन एवं वस्तु के लिए अपना शरीर स्वेच्छा से लैंगिक संभोग हेतु या अनैतिक प्रयोजन हेतु प्रस्तुत किया गया है तो वेश्यावृत्ति के अपराध के गठन हेतु इतना ही पर्याप्त है।

सुधार संस्था (धारा 2 ख)

इस अधिनियम के अंतर्गत सुधार संस्था की व्यवस्था की गई है। सुधार संस्था से अर्थ किसी भी नाम से ऐसी संस्था से है जो कि अधिनियम की धारा 21 के अंतर्गत स्थापित की गई है। जिन संस्थाओं में ऐसे व्यक्तियों को जो वेश्यावृत्ति में लिप्त हैं निरूद्ध रखा जा सकेगा जिनके सुधारने की संभावना और आवश्यकता है।इसके अंतर्गत वो आश्रय स्थल भी है जहां विचारणीय व्यक्तियों के अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप रखा जाए।

संरक्षण गृह (धारा 2 छ)

किसी भी नाम से ज्ञात ऐसी कोई संस्था होगी जो कि अधिनियम की धारा 21 के अंतर्गत स्थापित है तथा जिसमें ऐसे व्यक्तियों को रखा जाए जिनकी देखरेख को संरक्षण की आवश्यकता है। ऐसे व्यक्ति इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप रखे जाएं और उस स्थल की देखभाल समुचित तकनीकी रूप से योग्य व्यक्तियों द्वारा की जाए कि स्थल पर अधिनियम सम्मत उपस्कर तथा अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध होनी चाहिए।

राज्य सरकारों को इस प्रकार सुधार ग्रह संरक्षा गृह स्थापित करने के निर्देश अधिनियम के माध्यम से दिए गए है। सरकार अपनी इच्छा अनुसार कितने भी सुधार ग्रह निर्माण कर सकती है।

इस अधिनियम की धारा 21 की उपधारा 10 द्वारा प्रावधानों के उल्लंघन को निम्नलिखित रीति से दंडनीय बनाया गया है।

यदि इस धारा के अंतर्गत स्थापित किए जाने वाले सुरक्षा ग्रह या सुधार ग्रह की स्थापना या अनुरक्षण इस धारा के प्रावधानों के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति से करेगा तो वह-

प्रथम अपराध की दशा में जुर्माने की राशि ₹1000 तक की हो सकती है दंडित किया जाएगा। दूसरी बार अपराध की दशा में कारावास से जिसकी अवधि 1 वर्ष की हो सकेगी अथवा जुर्माने से जो ₹100 तक का हो सकेगा दोनों से दंडित किया जाएगा।

अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 के अंतर्गत दंड की व्यवस्था

इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध होने पर दंड की व्यवस्था की गई है क्योंकि यह एक प्रकार का आपराधिक कानून है जो अपने नियमों का उल्लंघन होने पर दंड की व्यवस्था करता है। भिन्न भिन्न प्रकार के दंड भिन्न भिन्न प्रकार के अपराधों के अंतर्गत दिए जाते हैं जिनका उल्लेख इस आलेख में किया जा रहा है।

वेश्याग्रह संचालन हेतु दंड (धारा-3)

अधिनियम की धारा 3 की उपधारा 1 में अपराध स्वरूप दंडनीय कृत्य है।

वेश्यागृह चलाना।

वेश्यागृह का प्रबंध करना।

वेश्यागृह चलाने या प्रबंध करने में सहायक होना।

वेश्यागृह में प्रबंध में कार्य करना।

उपरोक्त कृत्यों हेतु प्रथम बार कार्य अपराध हेतु न्यूनतम अवधि 1 वर्ष तथा अधिकतम अवधि 3 वर्ष का कारावास तथा ₹2000 तक के जुर्माने के दंड की व्यवस्था है। इसके बाद अपराध के लिए न्यूनतम 2 वर्ष की अवधि का कारावास और अधिकतम 5 वर्ष के कारावास तथा ₹2000 तक के जुर्माने के दंड का प्रावधान है।

अधिनियम की धारा 3 उपधारा 2 में वर्णित कृत्यों को भी अपराध माना गया है जो निम्नलिखित हैं-

परिसर के किराएदार पट्टेदार अभिभोगी व्यक्ति द्वारा परिसर अथवा उसके किसी भाग को वेश्यागृह के रूप में उपयोग करना किसी अन्य व्यक्ति को उपभोग में लेने देना।

परिसर के स्वामी पट्टाकर्ता भूस्वामी या उनके अभिकर्ता द्वारा परिसर या उसके किसी भाग में जानबूझकर वेश्यागृह की भांति उपयोग हेतु पट्टे पर प्रदान करना।

उपरोक्त अपराधों हेतु प्रथम बार अपराध हेतु 2 वर्ष तक की अवधि के कारावास तथा ₹2000 तक के जुर्माने से दंडित किए जाने का प्रावधान है। पश्चातवर्ती अपराध हेतु 5 वर्ष तक की अवधि के कठोर कारावास तथा जुर्माने के दंड की व्यवस्था की गई है।

स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम जगमंदिर लाल मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि दंड की मात्रा न्यायालय के विवेक पर निर्भर नहीं करती परंतु जितना दंड अधिनियम में प्रावधानों के अंतर्गत स्वीकृत किया गया है उतना दंडादेश प्रदान करने हेतु न्यायालय आबद्ध है।

वेश्यावृत्ति से अर्जित आय पर जीवन निर्वाह हेतु दंड (धारा-4)

यदि 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति की वेश्यावृत्ति से अर्जित आय संपत्ति पर पूर्णताः या भागताः अपना जीवन निर्वाह करता है तो ऐसे व्यक्ति को 2 वर्ष तक की अवधि के कारावास अथवा ₹1000 तक के जुर्माने दोनों से दंडित किया जा सके परंतु यदि उपार्जन किसी बालक अल्पवयस्क व्यक्ति की वेश्यावृत्ति से संबंधित है दंड की न्यूनतम 7 वर्ष एवं अधिकतम 10 वर्ष तक की अवधी का कारावास किसी अर्थात यदि किसी अवयस्क बालक से वेश्यावृत्ति करवाई जा रही है और उसकी वेश्यावृत्ति से होने वाली आय से अपना जीवन जिया जा रहा है।

इस प्रकार का जीवन निर्वाह करने वाले व्यक्ति को 10 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान इस अधिनियम के अंतर्गत कर दिया गया है। धारा 4 का उद्देश्य वेश्यावृत्ति की आय से जीवन निर्वाह की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना है। इसका उद्देश्य यह भी है कि अन्य व्यक्तियों को पीड़ित और विवश कर उन्हें वेश्यावृत्ति में डालकर उनकी उपार्जित आय का उपयोग जीवन निर्वाह हेतु न किया जाए।

अधिनियम की धारा 4 के प्रावधानों के लिए 18 वर्ष से अधिक आयु का व्यक्ति यदि निम्नलिखित किसी श्रेणी में आता है तो वह धारा 4 में वर्णित अपराध के लिए दोषी पाए जाने पर दंडित किया जाएगा-

किसी वेश्या के साथ निवास करने वाला व्यक्ति।

आदतन किसी वेश्या के संग संग रहने वाला व्यक्ति।

वेश्यावृत्ति करने में सहायक बनने वाला व्यक्ति।

वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर और दुष्प्रेरित करने वाला व्यक्ति।

किसी वेश्या के लिए दलाल के रूप में या मध्यस्थम के रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति।

वेश्यावृत्ति के लिए किसी व्यक्ति को उपलब्ध करने आदि के लिए दंडित किया जाना (धारा 5)

निम्नलिखित कार्यों को अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत दंडनीय अपराध कहा गया है-

किसी व्यक्ति को उसकी सहमति से अथवा सहमति विहीन रीति से वेश्यावृत्ति के प्रयोजन के लिए उपलब्ध करना या उपलब्ध कराने का प्रयास करना।

किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति के लिए वेश्यालय वेश्यागृह में जाने तथा वहां निवास करने के लिए प्रेरित करना।

किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति के लिए पालन पोषण करने हेतु एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना अथवा ले जाने का प्रयत्न करना।

वेश्यावृत्ति कराना या वेश्यावृत्ति करने के लिए प्रेरित करना।

उपरोक्त कृत्यों हेतु धारा 5 में न्यूनतम 3 वर्ष तथा अधिकतम 7 वर्ष तक की अवधि के कारावास एक ₹2000 तक के जुर्माने के दंड की व्यवस्था की गई है।किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध ऐसा अपराध कारित किया जाता है तो अधिकतम कारावास की अवधि 7 वर्ष के स्थान पर 14 वर्ष तक होगी।

यदि इनमें से कोई अपराध बालक या अवयस्क से संबंधित है तो कारावास की अवधि न्यूनतम 7 वर्ष और अधिकतम 14 वर्ष तक का कारोबार होगा।

किसी व्यक्ति के वेश्या के साथ पूर्व के संबंध में यदि उस वेश्या को वेश्यावृत्ति करने हेतु उत्प्रेरित करता है तो धारा 5 के अंतर्गत अपराध घटित हुआ माना जाए।

वेश्यागृह में निरुद्ध करने हेतु दंड (धारा- 6)

यदि किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा से या उसकी इच्छा के विरुद्ध वेश्यागृह में निरूद्ध किया गया है तथा किसी व्यक्ति को वेश्यागृह में इस आशय से निरूद्ध किया गया है कि वह ऐसे व्यक्ति के साथ मैथुन करें जो कि उसका पति या पत्नी नहीं है तो ऐसे कार्य धारा 6 के अंतर्गत दंडनीय अपराध घोषित किए गए है।

ऐसे दोषी व्यक्ति को न्यूनतम 7 वर्ष और अधिकतम आजीवन कारावास जब 10 वर्ष तक की अवधि के कारावास व जुर्माने से दंडित किया जा सकेगा।

परंतु निर्णय में कारणों का उल्लेख हो तो विशेष कारणों और परिस्थितियों में न्यूनतम अवधि से कम अवधि के कारावास से दोषी को दंडित किया जा सकता है। यदि वेश्या ग्रह में कोई किसी बालक के साथ पाया जाता है तो धारा 4 की उपधारा 1 के अंतर्गत अपराध घटित होने की धारणा की जाएगी।

वेश्यालय में निरूद्ध किसी अल्पवयस्क बालक के चिकित्सकीय परीक्षण से यह स्पष्ट होता है कि उसका लैंगिक शोषण हुआ है तो यह उपधारणा की जाएगी इस बालक या अल्पवयस्क को वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से ही निरूद्ध किया गया था अथवा उसका वाणिज्य प्रयोजन हेतु लैंगिक शोषण किया गया था अर्थात इस अधिनियम के अंतर्गत उपधारणा के माध्यम से मान लिया जाएगा इस प्रकार का अपराध हुआ होगा।

सार्वजनिक स्थानों पर वेश्यावृत्ति के लिए दंड (धारा-7)

अधिनियम की धारा 7 के अनुसार निम्नलिखित स्थलों को सार्वजनिक स्थल माना गया है-

कोई सार्वजनिक स्थान।

कोई सार्वजनिक पूजा स्थल या धार्मिक स्थल।

शिक्षण संस्था।

छात्रावास।

चिकित्सालय।

परिचर्यागृह।

उपरोक्त स्थानों से 200 मीटर के दायरे में आने वाले स्थान।

एक मामले में उच्चतम न्यायालय का यह मत था कि सार्वजनिक स्थल खोलने हेतु स्थान ऐसा होना चाहिए कि जो जनसाधारण के प्रवेश हेतु उपलब्ध हो तथा जिसमें जनता वास्तव में बहुदा प्रवेश करती हो या आवागमन करती हो।

यदि दोषी व्यक्ति उपरोक्त स्थानों में से किसी स्थान में वेश्यावृत्ति करने हेतु पाया जाता है तो व्यक्ति 3 माह तक की अवधि के कारावास से दंडित किया जाएगा। यदि उपरोक्त स्थानों में से किसी स्थान पर अपराध किसी बालक अवयस्क के साथ किया जाता है तो दंड की अवधि न्यूनतम 7 वर्ष तथा अधिकतम आजीवन कारावास से 10 वर्ष की अवधि का कारावास उसमें जुर्माना भी हो सकता है।

विशेष कारणों से न्यूनतम कारावास की अवधि 7 वर्ष से कम हो सकेगी।

अधिनियम की धारा 7 की उपधारा 2 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थल का पालक होते हुए ऐसे स्थान में वेश्यावृत्ति के प्रयोजन से वेश्याओं को आश्रय देता है।

जैसे स्थानों को पट्टेदार या भारसाधक व्यक्ति जानबूझकर ऐसे स्थानों का प्रयोग वेश्यावृत्ति हेतु होने देता है अथवा ऐसे स्थान को उपरोक्त में से कोई व्यक्ति वेश्यावृत्ति के प्रयोजन से किसी व्यक्ति को पट्टे में देता है तो धारा 7 की उपधारा 2 के अंतर्गत दंडनीय अपराध करता है-

इस धारा के अंतर्गत अपराध होने पर प्रथम बार दोषी व्यक्ति को 3 माह तक की अवधि के कारावास या ₹200 के जुर्माने से दंडित किया जा सकेगा दूसरी बार फिर अपराध करने पर 6 माह तक के कारावास से दंडित किया जा सकेगा।

यदि सार्वजनिक स्थल कोई होटल है तो उसका लाइसेंस न्यूनतम 3 माह की अवधि हेतु निलंबित किया जा सकता है। आरोपी को धारा 7 के प्रावधानों के अंतर्गत दोष सिद्ध करने हेतु यह सिद्ध किया जाना आवश्यक होता है कि सार्वजनिक स्थल जैसा की धारा साथ में वर्णित है का प्रयोग वेश्यावृत्ति के लिए किया गया है अथवा जिस स्थल का प्रयोग वेश्यावृत्ति के लिए किया गया है उसे वेश्यावृत्ति हेतु सार्वजनिक स्थल घोषित किया गया है।

अधिनियम की धारा 14 के अनुसार अधिनियम के अंतर्गत घोषित सभी दंडनीय अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं इसका प्रभाव यह हुआ कि अधिनियम के अंतर्गत अपराध घोषित किए गए कार्यों हेतु बिना वारंट की गिरफ्तारी संभव है।

इस अधिनियम के अंतर्गत वेश्यावृत्ति के लिए प्रलोभन देना या उकसाने को भी अपराध बनाया गया है जो कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति हेतु प्रभावित करता है यह सार्वजनिक स्थानों पर उसको इस हेतु प्रदर्शन करता है उसे 6 माह की अवधि के कारावास या ₹500 तक के जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किए जाने का प्रावधान है और दोबारा फिर इस प्रकार का अपराध करने पर 1 वर्ष तक की अवधि के कारावास का प्रावधान है।

धारा 8 के अंतर्गत घोषित अपराधी पुरुष द्वारा किया जाता है तो दंड की मात्रा न्यूनतम 7 दिन का कारावास होगी जो 3 माह की अवधि तक बढ़ाई जा सके।

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  *सूरत, गुजरात से मुम्बई के राजमार्ग पर सूरत से ७८ किलोमीटर  वलसाड से 16 km ( सुरतकी तरफ)  पर वाघलधारा गाँव है । राइट हेंड साइड पर आपको "श्री प्रभव हेम कामधेनु गीरीविहार ट्रस्ट, पालीताणा" संचालित "श्री रसिकलाल माणिकचंद धारीवाल कैंसर हॉस्पिटल" की कमान दिखाई देगी । हजारो चोरस मिटर मै फैला फल, फूल, खेत से हराभरा ये संकुल कोई आश्रम से कम नही। यहाँ अति सुंदर  जैन मंदिर एवं विशाल भोजन शाला भी है । ऒंर यहां की गौंशाला में करीब 400  देशी गाय है । यहां कैंसर के मरीज़ (दर्दी) एवं एक साथी को 10 दिन उपचार एवं ट्रेनिंग के लिए रखा जाता है । 80 बेड उपलब्ध है।  नास्ता, लंच और डिनर के समय दर्दी से मिल सकते है।* *सुबह ९ बजे आपको सिर्फ ५० रुपये मे केस निकलवाना है । अपने साथ मरीज़ (दर्दी) की केस फाइल एवं अगर ऑपरेशन, केमो करवाई हो तो वो साथ ले जानी है । सुबह १०.३० से १२.३० और दोपहर ३.३० से ५.३० दरमियान डॉक्टर द्वारा दर्दी की जांच के बाद १० दिन के लिए एडमिट किया जाता है । केवल दर्दी एवं एक साथी को ही प्रवेश की अनुमति है। ऐसी स्थिति में दर्दी को बिलकुल मुफ्त एवं साथी को ११ दिन क...

तोता पालने पर जेल जाओगे , कैद में रखना crime, Parrot Caging

  Crime Under Section 49,51 Of  Wild Life Protection act  तोता पालना तो देश में कॉमन है, ऐसे में उसको पिंजड़े में रखना भी अपराध है? वाइल्डलाइफ एक्ट के मुताबिक,  तोते या किसी अन्य पक्षी को पिंजड़े में कैद करके रखना और उससे किसी भी तरह का लाभ लेने के लिए प्रशिक्षण देना कानूनन अपराध है । भारत में कानून इजाजत नहीं देता कि किसी भी पक्षी को कैद करके रखा जाए। आम तौर पर नागरिक तोतों को पालतू पक्षी मानते हैं लेकिन वन्यजीव अधिनियम 1972 की धारा-4 के तहत इसे या किसी भी अन्य पक्षी को पिंजरे में कैद रखना या पालना गैरकानूनी है। वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत तोता को पालना या पिंजरे में कैद करना दंडनीय अपराध है। यदि किसी व्यक्ति ने तोता पाल रखा हो या उसे पिंजरे में कैद रखा हो तो वन विभाग के नजदीकी कार्यालय में सुपुर्द कर दें। देश भर में तोतों की करीब एक दर्जन प्रजातियां मौजूद हैं और सभी संरक्षित हैं। नियमानुसार तोतों को पालने के लिए वन विभाग की अनुमति जरूरी होती है, लेकिन उन्हें पिंजरे में बंद करने वाले यह अनुमति नहीं लेते हैं। लोग शौकिया तौर पर पिंजरों में रंग-बिरंगे प...

Chhattisgarh CG Police Official Mobile numbers

    S.N.   Name   Designation Office   Cell/ Mobile No. Code Number DGP Office, PHQ, Raipur 1 Shri Ashok Juneja DGP 0771 2221100 94791- 90444 0771 2211201 2 Shri Bhagwati Singh PRO (DGP) 0771 2511850 - Intelligence 3 Dr. Aanand Chhabra IG, Intelligence 0771 2436525 94252- 58168 0771 2436200(F) - 4 Shri Abhishek Maheshwari AIG (Intelligence)     90986- 73147 5 Shri M.L. Kotwani AIG (Intelligence) 0771 2436526 94252- 34323 P&P/Technical Services/Telecom/Traffic/Rail/Cyber/...

IPO Fraud By Bharat Global Developer Limited ......

  भारत ग्लोबल डेवलपर लिमिटेड शेयर बिना सेबी की मंजूरी के लिस्ट हो गया और निवेशकों को अरबों का चूना लगाया।  सेबी चेयरमैन और बड़े अधिकारी बीएसई  पर कोई कार्यवाही नहीं कर रहे ।  भारी घूस लेने की आशंका ! रक्षक ही भक्षक बना! Mumbai: Gujrat based company Bharat Global Developer Limited ie BGDL listed at BSE on 21 March 1995 without SEBI compliance.As per SEBI RTI Reply the BGDL has not done SEBI compliance and BSE listed it against regulator permission. BSE done it for  exchange charges and cheated innocent investors.Recently SEBI banned BGDL share trading in Dec 2024 for misleading orders announcement. On 11 April 2025  SEBI permitted BGDL share trading without checking SEBI compliance certificate. SEBI Whole time director SEBI Shri Kamlesh Chandra Varshney corruptly lifted ban on trading inspite of many complaints . SEBI new chairman Tuhin Kanta pandey and others WTD are silent on complaint of no IPO compliance by BGDL and BSE crime. The corrupt SEBI officers a...

ACB Judge Mumbai Want To Argue Matter Without Case Number

  ACB JUDGE SHASHIKALA S NAGUR MUMBAI SESSION WANT TO ARGUE MATTER WITHOUT CASE NUMBER. WHY JUDGE GIVING SPECIAL TREATMENT TO THIS CASE? ALL THE CASES ARE ARGUING DURING FILING STAGE OR WITHOUT CAUSELIST LISTING? Mumbai: The complainant filed three contempt petitions against ACB MUMBAI officers for not registering Zero FIR against Thane District Judge SB Agarwal, ADJ Amit Shete and JMFC Smt GS Bora for doing corruption in judicial process under section 7&13 of PC ACT 1992. The ACB officers disobeyed SC Lalita Kumari directions and contempt filed as per para 3 of the Lalita Kumari judgment.  The registry raised maintainability question to petitioner .Petitioner referred SC judgment that registry cannot decide maintainability of petition. As per the ACB judge Shashikala verbal direction registry is not numbering contempt petition . Clerks are afraid to number petition as ACB officers are having well wishers in session court. They are insisting petitioner to argue with judge ...