जस्टिस पारदीवाला ने स्वतंत्र न्यायापालिका की ऐसी स्वप्नलोकी अवधारणा बताई जो कार्यपालिका से बिल्कुल कटी-छंटी हो। इस परिप्रेक्ष्य में पारदीवाला की सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में नियुक्ति की ही बात कर ली जाए। वो गुजरात हाई कोर्ट में तीसरे और देशभर उच्च न्यायालयों के जजों के वरिष्ठता क्रम में 49वें पायदान पर थे। अचानक सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में उनके नाम की चर्चा हुई और 5 मई को घोषणा भी हो गई।
कानून का शासन और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की परिपाटी तो यह कहती है कि पारदीवाला से जितने जज वरिष्ठ हैं, उनके नामों पर विचार पहले होना चाहिए था। लेकिन पारदीवाला को उनसे पांच से आठ वर्ष तक वरिष्ठ कई जजों की योग्यता को दरकिनार करके सुप्रीम कोर्ट लाया गया। सोचिए, जस्टिस पारदीवाला के सामने अगर किसी सरकारी अधिकारी की याचिका आई होती जिसमें वह अपने से आठ वर्ष जूनियर के प्रमोशन के खिलाफ शिकायत की होती तो वो क्या फैसला देते? कानून का शासन सिर्फ भाषण का विषय नहीं हो सकता है। इसके डीएनए में स्टील की नसें और शानदार दिमाग होना चाहिए।
undefined
नूपुर शर्मा को फटकारने वाले जज आलोचना से हुए आहत, बोले- सोशल मीडिया से जजों पर हो रहे हमले, रोक के लिए बने कानून
तब कहां गया कानून का शासन?
जस्टिस पारदीवाला की सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में नियुक्ति को लेकर एक और गजब चीज हुई। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सरकार पर कॉलेजियम के सुझावों को लंबे समय तक लटकाने का आरोप मढ़ते रहते हैं, लेकिन क्या गजब की बात है कि पारदीवाला की नियुक्ति को सरकार ने तीन दिन में ही हरी झंडी दे दी। उन्होंने 9 मई को पद की शपथ ली। क्या कोई आम जनता को समझा पाएगा कि जब कोविड के कारण उच्च न्यायालयों में जजों के पद वर्षों से खाली हैं, तब पारदीवाला की सुप्रीम कोर्ट में सुपरसोनिक स्पीड से नियुक्ति के पीछे क्या राज है?
यहां लोगों की आवाज का कोई मायने नहीं है। आम जनता के पास जजों की नियुक्ति पर सवाल उठाने का अधिकार ही कहां है? उन्हें यह अधिकार मिलना भी नहीं चाहिए, लेकिन उन्हें इतना तो आश्वासन मिलना ही चाहिए कि किसी जज की सर्वोच्च न्यायालय में त्वरित नियुक्ति करते हुए कानून का शासन, परिपाटी और परंपरा को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। क्या कार्यपालिका सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम पर दबाव बनाती है, यह सवाल देश की सर्वोच्च अदालत के गलियारों में उठता रहता है।
जला दो, जला दो, जला दो
ReplyDeleteजला दो इसे फूंक डालो ये दुनिया
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
जला दो, जला दो, जला दो
जला दो इसे फूंक डालो ये दुनिया
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
जला दो, जला दो, जला दो
जला दो इसे फूंक डालो ये दुनिया
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
जला दो, जला दो, जला दो
जला दो इसे फूंक डालो ये दुनिया
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
जला दो, जला दो, जला दो
जला दो इसे फूंक डालो ये दुनिया
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
जला दो, जला दो, जला दो
जला दो इसे फूंक डालो ये दुनिया
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
*******************************************************************************************
ये दुनिया अगर मिल भी - Ye Duniya Agar Mil Bhi (Md.Rafi, Pyaasa)
Movie/Album: प्यासा (1957)
Music By: एस.डी.बर्मन
Lyrics By: साहिर लुधियानवी
Performed By: मो.रफ़ी
ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया
ये इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनिया
ये दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है
हर इक जिस्म घायल, हर इक रूह प्यासी
निगाहों में उलझन, दिलों में उदासी
ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी
ये दुनिया अगर मिल भी...
यहाँ इक खिलौना है इन्सां की हस्ती
ये बस्ती है मुर्दा-परस्तों की बस्ती
यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती
ये दुनिया अगर मिल भी...
जवानी भटकती हैं बदकार बन कर
जवाँ जिस्म सजते हैं बाज़ार बन कर
यहाँ प्यार होता है व्योपार बन कर
ये दुनिया अगर मिल भी...
ये दुनिया जहाँ आदमी कुछ नहीं है
वफ़ा कुछ नहीं, दोस्ती कुछ नहीं है
जहाँ प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है
ये दुनिया अगर मिल भी...
जला दो इसे फूंक डालो ये दुनिया
जला दो, जला दो, जला दो
जला दो इसे फूंक डालो ये दुनिया
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी...
VIJAY KUMAR AGARWAL, Ex-IAS, Mobile: 9560172716