फर्जी लोगों की पहचान हो जाएगी, कुछ लोग प्रसाद जानवरों को खिलाते है
*भंडारे में भोजन खाने वालों को तिलक लगाएं* एक अति आवश्यक सुझाव....*।
*जब कभी भी भण्डारे का आयोजन करें तो कृपया उसमें एक ऐसा व्यक्ति जरूर रखें जो भण्डारे में प्रसाद ग्रहण करने आने वालों को पहले तिलक लगाए। इस प्रकार से भंडारे में आने वाला हर आदमी आदर पाकर बहुत गर्वित होगा एवं हर हिन्दू में तिलक लगाने की परम्परा फैलेगी।*
*मैंने अपने शहर में देखा है कि-*
*मंगलवार या शनिवार को बहुत जगह एक साथ भंडारा होता है, जिसमें मुसलमान के अनगिनत बच्चे पॉलिथीन बैगलेकर बहुत सारा भोजन इकट्ठा कर अपनी मुर्गी, बकरी को खिलाने के लिए संग्रह करते हैं। अधिकांश मुसलमान काफिर का प्रसाद नहीं खाते बल्कि उसे घर ले जाकर पशुओं को खिलाते हैं।*
*यदि तिलक लगाने की परंपरा की शुरुआत कर दी जाए और तिलक लगने के बाद भंडारा प्रसाद दिया जाए तो ।*
*दो अच्छी बातें होंगी :-*
*१. प्रथम- गाय खाने वाला मुसलमान या अन्य कुपात्र भंडारे से प्रसाद लेने के लिए तिलक लगवाने से दूर भागेगा, इससे पवित्र प्रसाद (अन्नपूर्णा) का अपमान नहीं होगा।*
*२. दूसरा- दुबारा लाइन में लग कर बैग भरकर घर ले जाकर दुरूपयोग करने वाले तिलक लगा रहने से पहचान में आ जाएंगे।*
*3 प्रसाद उन सभी तक पहुचेगा जो आदर सत्कार से ग्रहण करेगा ।*
*4 और हिन्दू समाज में धीरे धीरे जागृति का भाव भी जागेगा।*
*अपने हिंदुत्व की रक्षा व पहचान के लिए एक बहुत ही सामान्य उपाय करो- तिलक लगाने और चोटी रखने की परंपरा को पुनर्जीवित करो।*
तिलकर का लाभ: भारत में भाल अर्थात माथे पर तिलक लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह व्यक्तित्व को गरिमा प्रदान करता है। मन मस्तिष्क को शीतलता देता है। तिलक शरीर की पवित्रता का भी द्योतक है। धर्मिक मन बिना स्नान के ध्यान के इसे धारण नहीं करता है। वास्तव में, हमारे शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो अपार शक्ति के भंडार हैं। इन्हें चक्र कहा जाता है। माथे के बीच में जहां तिलक लगाते हैं, वहां आज्ञाचक्र होता है। यह चक्र शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। शरीर की प्रमुख तीन नाड़ियां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं। इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है। यह स्थान भौहों के मध्य में थोड़ा ऊपर होता है। यहां तिलक लगाने से आज्ञा चक्र की गत्यात्मकता को बल मिलता है। यह गुरु स्थान कहलाता है। यहीं से पूरे शरीर का संचालन होता है। यह हमारी चेतना का मुख्य स्थान है। इसी को मन का घर कहा जाता है। इसी कारण यह स्थान शरीर में सबसे ज्यादा पूजनीय है। योग में ध्यान के समय इसी पर मन एकाग्र किया जाता है।
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