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History Of Toothpaste In India....Read Before Using Toothpaste

 








*🪥टूथपेस्ट या टॉक्सिक या जहरीले पेस्ट का 😳आंखें फ़ाड़ देने वाला सच...*

*पढ़कर दुखी हो जाओगे, दिल दहल जायेगा...*

दुनियां भर के टूथपेस्ट बड़े-बड़े दावे करते हैं कि उनका टूथपेस्ट दांतों के कोने-कोने में घुस कर सफाई करता है, साँसों की बदबू दूर करता है और दाँतों की सड़न को दूर करता है ! 

*तो मेरे मन में विचार आया कि जरा "गूगल मैया" से पूछें तो सही कि क्या यह टूथपेस्ट हमारे दांतो के लिए इतना सचमुच इतना लाभदायक और सुरक्षित है !*

*लेकिन मैया ने तो सारे राज ही खोल कर रख डाले !*

*कहने लगी ये तो आपके लिए मल्टीनेशनल कम्पनियों द्वारा फैंकी गई मांस की बोटी है, सिगरेट का दमदार कश है और छोटा सा एटम बम है !*

*तो आइये आपको भी टूथपेस्ट की यह जबरदस्त ऐतिहासिक कहानी सुना ही देता हूँ !*


*इतिहास:- दन्त-मंजन से टूथपेस्ट तक का सफर:-*

टूथपेस्ट की शुरूआत सबसे पहले भारत और चीन में अठारहवीं शताब्दी से पहले ही हो गई थी !

तब यह दन्त-मंजन या पॉवडर के रूप में विकसित हुआ ! 


*भारत में नीम, बबूल, नमक, पुदीने की पत्तियों, सूखे फूलों आदि का प्रयोग बहुत पहले से होता था !*

*लेकिन सन् 1824 में पीबॉडी नाम के एक अंग्रेज दन्त विशेषज्ञ ने साबुन मिला कर आधुनिक टूथपेस्ट बनाई !*

सन् 1850 में जॉन हेरिस ने पहली बार उसमें चॉक मिलाई !


अंततः सन् 1873 में कॉलगेट कम्पनी ने पहली बार व्यावसायिक स्तर पर टूथपेस्ट बनाई और जार में भर कर बेचना शुरू किया था !

इसके बाद सन् 1892 में डॉ. व्हाशिंगटन शेफील्ड ने टूथ-पेस्ट की दबाने वाली ट्यूब बनाने की तकनीक विकसित की !


*हड्डियों का झोल, बिके चांदी के मोल...*

*भारत के एक बहुत बड़े वैज्ञानिक और विशेषज्ञ के अनुसार हर ब्राण्डेड टूथपेस्ट में मरे हुए जानवरों की हडियां महीन पाउडर के रूप में मिलाई जाती है !*


*उन्होंने तो लेबोरेट्री में परीक्षण करके पुख्ता रिपोर्ट तैयार की है कि कौन से टूथपेस्ट में किस जानवर की हड्डियां मिलाई जाती हैं ! इशारों में समझ जायें ये जानवर कोई भी हो सकता है !*


*जो लोग टूथपेस्ट करते हैं वे भूल कर भी अपने को शाकाहारी न समझें !*

*शाकाहारी जैन और हिन्दू यदि आपना धर्म बचाना चाहते हैं तो वे आज ही टूथपेस्ट का त्याग कर दें !*


*जर्दे का बघार करेगा बीमार:-*

*दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंस एंड रिसर्च (डिपसार) ने बड़ी कंपनियों के 34 टूथपेस्ट पेस्ट की जांच करने के बाद निष्कर्ष निकाला है कि लगभग सभी टूथपेस्ट कंपनियां लोगों के दांतों को बर्बाद करने में जुटी हुई है !*


*डिपसार के पूर्व निदेशक प्रोफेसर डॉ. एस.एस. अग्रवाल के अनुसार बाजार की सभी प्रचलित कंपनियों के टूथपेस्ट में निकोटिन की मात्रा बहुत अधिक पाई गई !*

*निकोटीन जर्दे में पाये जाने वाला नशीला पदार्थ है, जिससे सिगरेट बनाई जाती है।*


*निकोटिन के अलावा टूथपेस्ट में फ़्लोराइड, यूजीनॉल और टार भी बड़ी मात्रा में पाये गये !*

*किसी किसी पेस्ट में तो 18 मिलीग्राम तक निकोटिन पाया गया है !*

*एक सिगरेट में दो से तीन मिलीग्राम तक निकोटिन होता है !*

*इस हिसाब से देखें तो एक पेस्ट की ट्यूब में आठ से नौ सिगरेट के बराबर निकोटिन पाया गया है !*

*निकोटिन दिमाग को ताजगी देता है इसीलिए टूथपेस्ट में मिलाया जाता है, ताकि पेस्ट करने के बाद आपको ताजगी महसूस हो, आप इस नशे के आदी हो जायें और कभी वह पेस्ट करना नहीं छोड़ें ! अधिक निकोटिन आगे चलकर कैंसर के दावत दे सकता है !*


*टूथपेस्ट में मिला यूजीनॉल दर्द-नाशक है, लेकिन यह दिल की धड़कन बढ़ाता है और दिल की धमनियों पर इसका बुरा असर पड़ता है !*


*टूथपेस्ट में मिला टार कैंसर का बड़ा कारक है ! इससे भूख कम लगती है !*


*प्रोफेसर एस एस अग्रवाल के अनुसार सरकार सिगरेट व तंबाकू पर तो प्रतिबंध लगाना चाहती है,*

*लेकिन इन टूथपेस्ट कंपनियों पर कोई रोक ही नहीं है !*

*इन्हें तो तंबाकू उत्पाद तक भी घोषित नहीं किया गया है !*

*जबकि यह तंबाकू से अधिक खतरनाक हैं !*


*सोडियम लॉरिल सल्फेट, हैल्थ को करे मटियामेट:-*

*कॉलगेट समेत सभी अन्तरराष्ट्रीय ब्रांड अपने टूथपेस्ट में एक और खतरनाक पदार्थ सोडियम लॉरिल सल्फेट मिलाते हैं ! इससे झाग बहुत बनते हैं !*

*जिससे आपको लगता है कि टूथपेस्ट बहुत उम्दा किस्म का है और आपके दांतों की गंदगी साफ होकर झाग के रूप में निकल रही है ! जबकि सच तो यह है कि दातों की सफाई का 80 % काम तो आपका ब्रश ही करता है !*


*सोडियम लॉरिल सल्फेट तो बस मसूड़ों को नुकसान पहुँचाता है !*


*सोडियम लॉरिल सल्फेट एक जहर है और इसकी 0.05 मिलीग्राम की मात्रा भी शरीर में चली जाये तो आपको कैंसर हो जाता है !*


इस रसायन को तकनीकी भाषा में सिंथेटिक डिटरजेन्ट कहा जाता है और इसे वाशिंग पावडर और डिटर्जेंट केक, शैम्पू और दाढ़ी बनाने वाले शेविंग क्रीम में भी मिलाया जाता है !


*ट्राइक्लोसान:-*

टूथपेस्ट में ट्राइक्लोसान भी मिलाया जाता है ! यह एक सस्ता कीटाणुनाशक है ! 


लेकिन यह शरीर की वसा में एकत्रित होता रहता है, रक्षा-प्रणाली को कमजोर बनाता है और यकृत, वृक्क तथा फेफड़ों को क्षति पहुँचाता है और सबसे बड़ी बात यह है कि इससे आपको कैंसर हो सकता है !


*सोर्बिटोल और अन्य कृत्रिम शर्कराएँ:-* 

*इन्हें टूथपेस्ट को मीठा बनाने के लिए मिलाया जाता है !*

*ये सब शरीर के नुकसान बहुँचाती हैं !*

*लम्बे समय तक सोर्बिटोल का प्रयोग करने से आपको कैंसर हो सकता है !* 


*सिद्धांततः पेस्ट में मिठास होनी ही नहीं चाहिये !*


*संवैधानिक चेतावनी:-*

*आजकल फ्लोराइड वाले टूथपेस्ट्स पर यह चेतावनी होती है कि...*

*इसे छह साल की उम्र से कम के बच्चों की पहुंच से दूर रखें और मटर के दाने से अधिक मात्रा में प्रयोग नहीं करें !*

*यदि बच्चा इससे अधिक मात्रा निगल ले तो तुरंत इमरजेंसी चिकित्सा लें !*

*लेकिन टीवी के एड में इससे चौगुनी मात्रा ब्रश पर लगा कर बच्चे को पेस्ट करते हुए दिखाया जाता है !*

*डेंटिस्ट नितिन जैन के अनुसार, डेढ़ सौ ग्राम की टूथपेस्ट की ट्यूब में 140 मिलीग्राम फ्लोराइड होता है !*

*जबकि 30 मिलीग्राम से भी कम फ्लोराइड एक नौ साल (औसत वजन 28 किलोग्राम) के बच्चे के लिए जानलेवा हो सकता है !*


*शारीरिक वजन के प्रति किलोग्राम सिर्फ 0.2 मिलीग्राम फ्लोराइड ही पेट में दर्द पैदा कर सकता है !*

*ब्रश के दौरान बच्चे तीन मिग्रा तक फ्लोराइड निगल जाते हैं !*

*कोलगेट का फ्लोरोइड युक्त टूथ पेस्ट यह कह कर बेचा जा रहा है कि Indian Dental Association ने इसे प्रमाणित किया है !*

*वे मुझे जरा बताएं कि कब इस संगठन ने कोई बैठक आयोजित की और कोलगेट के ऊपर प्रस्ताव पारित किया कि हम कोलगेट को प्रमाणित करते हैं !* *आप इनकी कुटिल नीति देखिये कि ये टूथपेस्ट की ट्यूब पर "accepted" लिखते हैं ना कि "certified"!*


*मुझे तो आश्चर्य होता है कि भारत में दाँतों के डॉक्टर इसका विरोध क्यों नहीं करते !*

*दांतों का एटम बम या टॉक्सिक अर्थात जहरीला टूथपेस्ट:-*

*फ्लोराइड*  

*क्रिस ब्रायसन और जोयल ग्रिफिथ्स का "फ्लोराइड, टीथ एण्ड एटोमिक बम" नामक लेख सितम्बर, 1997 में क्रिश्चियन साइन्स मॉनीटर पत्रिका ने प्रमाणित किया, उन्हें सारे दस्तावेज दिये गये और संपादक ने अपनी अच्छी टिप्पणी भी दी !*

लेकिन दुर्भाग्यवश इन सबके उपरांत भी यह लेख मॉनीटर पत्रिका में प्रकाशित नहीं हो सका !

जब मॉनिटर ने उनकी खोज को छापने से मना कर दिया तो ग्रिफिथ और ब्रायसन ने अपनी यह रिपोर्ट ‘"अर्थ आइलैण्ड जर्नल" को दे दी !

*जिन्होंने इसे अपने 97-98 के अंक में मुख्य लेख "अमेरिका में फ्लोरीकरण के पीछे: ड्यूपोंट, पेंटागन और एटम बम" शीर्षक से छापा और इसे प्रोजेक्ट सेंसर्ड अवार्ड भी मिला !*

इस लेख में उन्होंने एटम बम बनाने में काम आने वाले फ्लोराइड नाम के खतरनाक टॉक्सिन के घिनौने इतिहास पर प्रकाश डाला है और इससे जुड़े कई रहस्यों को बेपर्दा किया है ! इन्होंने एक वर्ष तक इस विषय पर विस्तार से अध्ययन किया और सरकार के कई गोपनीय दस्तावेज भी हासिल किये ! उनके इस लेख ने पूरे विश्व को हिला दिया था ! पिछली आधी शताब्दी के संघर्ष ने एक बार पुनः सिद्ध हो गया है कि मानव विनाश के लिए निर्मित पदार्थों का कितनी चतुराई से हमारे दैनिक जीवन में इस्तेमाल कराया जा रहा है ! अगर अमेरिकी जैसे तकनीक प्रशिक्षित और विज्ञान को लेकर जागरूक कहे जाने वाले समाज के साथ वहां की निर्माता कंपनियां इतना खतरनाक खेल खेल सकती हैं तो वे भारत या एशिया एवं अफ्रीका के देशों के साथ वैसा व्यवहार कर रही होंगी, आप स्वयं सोच सकते हैं !


*एटम बम बनाने के लिए जरूरी है:- "फ्लोराइड..."*

*लगभग पचास वर्ष पहले अमेरिका नें पीने के पानी में फ्लोराइड मिलाना यह कह कर शुरू किया था कि यह हमारे दांतों को सड़ने से बचाता है !*

*उन्हें चमकाता है, सांसों की दुर्गंध दूर करता है और पूर्णतया सुरक्षित है !*

*तब से अमेरिका के 70% पीने के पानी का फ्लोरीकरण किया जा रहा है !*


*उन दिनों अमेरिका ने फ्लोराइड की उपयोगिता साबित करने के लिए बहुत प्रचार-प्रसार किया !* 

*लेकिन फिर भी विश्व के लगभग सभी अन्य देशों ने इस तकनीक को नहीं अपनाया था !*


*आखिर अमेरिका क्यों इस...*

*फ्लोराइड को हमारे दांतों और शरीर के स्वास्थ्य के लिए इतना फायदेमन्द और जरूरी साबित करने पर तुला था !*


क्या सचमुच यह दांतों का सुरक्षा चक्र है या फिर हमारे खिलाफ कोई खतरनाक साजिश है !

तो दोस्तों अन्दर की कहानी में तो वाकई बहुत ट्विस्ट है !

कहानी सचमुच अमरीकी फिक्शन फिल्म जैसी ही रोचक है !

*आपको फ्लोराइड का सच जानने के लिए आपको इस घिनौनी दास्तान को पढ़ना समझना ही होगा !*


बात उन दिनों की है जब द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमरीकी सेना का मेनहटन प्रोजेक्ट दुनिया का पहला परमाणु बम बनाने में जुटा था और पूरे विश्व में अपनी धाक जमाने, खुद को दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश साबित करने और अन्य देशो पर आक्रमण करने के लिए वह हर हाल में परमाणु बम जल्द से जल्द बना लेना चाहता था !

इसके लिए उसे भारी मात्रा में यूरेनियम तथा प्लूटोनियम की आवश्यकता थी ! 

जिनका संवर्धन करने के लिए लाखों करोंड़ों टन फ्लोराइड की जरूरत पड़नी थी ! 


इस कहानी की तह तक पहुँचने के लिए ग्रिफिथ्स और ब्रायन ने विश्व युद्ध तथा अमरीकी सेना के मेनहटन प्रोजेक्ट (जो एटम बम बना रहा था) के सैंकड़ों गुप्त दस्तावेज हासिल किये !


इन दस्तावेजों के अनुसार एटम बम बनाने के लिए फ्लोराइड बहुत जरूरी तत्व था ! 


फ्लोराइड बहुत ही घातक विष है और यह बम बनाने वाले मजदूरों और आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों, जानवरों और फसलों को नुकसान पहुँचा सकता था !


इसलिए सरकार ने बम प्रोग्राम के अनुसंधानकर्ताओं को गुप्त आदेश दिये कि वे फ्लोराइड को सुरक्षित और मनुष्य के लिए जरूरी साबित करने के लिए सबूत पैदा करें !

ताकि यदि कोई पंगा हो या जरूरत पड़े तो ये झूँठे दस्तावेज बचाव हेतु न्यायालय में भी पेश किये जा सकें और उनका एटम बम बनाने के काम में कोई बाधा नहीं आये !

फ्लोराइड और पीने के पानी को फ्लोरीकरण के दुष्प्रभाव का अध्ययन करने के लिए सेना ने शोध करने का नाटक भी किया !

न्यूबर्ग, न्यूयॉर्क में सन् 1945 से 1956 तक “प्रोग्राम-एफ” नाम से एक शोध हुई !

लेकिन शोध का पूरा तानाबाना बम बनाने वाले वैज्ञानिकों ने ही बनाया था !

सारी शोध गुपचुप तरीके से की गई !

राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कई तथ्य और शोध पत्र गुप्त रखे गये ! 

इसकी जो गुप्त रिपोर्ट अमेरिकन डेन्टल एसोसियेशन को दी गई थी ! 

उसमें साफ लिखा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर यू.एस. एटोमिक ऐनर्जी कमीशन के आदेश से रिपोर्ट को सेंसर किया गया है और फ्लोराइड के दुष्प्रभावों सम्बन्धी जानकारिया हटा ली गई हैं !

सेना द्वारा फ्लोराइड की सुरक्षा की इस हद तक वकालत करना हमेशा से ही शंकास्पद बना रहा !


दस्तावेजों के अनुसार सन 1944 में न्यू जर्सी के डीप वाटर क्षेत्र में स्थित ड्यूपोंट के अत्यंत गोपनीय अस्त्र कारखाने में अचानक एक दुर्घटना हो गई ! 

यहाँ यूरेनियम और प्लूटोनियम का संवर्धन होता था ! 

जिसके लिए लाखों टन फ्लोराइड बनाया जाता था ! 

इस दुर्घटना में भारी मात्रा में फ्लोरोइड का रिसाव हुआ, जो आसपास के ग्लोसेस्टर और स्लम इलाकों और खेतों में फैल गया था !

इस रिसाव से किसानों का बहुत नुकसान हुआ, फसलें जल गईं, टमाटर सड़ गये, रातों-रात सारी मुर्गियाँ मर गई, घोड़े बीमार हो गये और उठ नहीं पा रहे थे तथा यही हालत गायों की भी हुई !

उनके प्रसिद्ध आड़ू भी खराब हो गये थे !

जो न्यूयॉर्क के आल्डोर्फ एस्टोरिया हॉटेल को बेचे जाते थे !

यहाँ के टमाटरों से कैम्पबेल कंपनी सूप बना कर बेचती थी !

जिन किसानों ने गलती से वे आड़ू खा लिए थे, वे बीमार हो गये और दो दिनों तक उलटी करते रहे !

देश की प्रसिद्ध केमिकल कंसल्टिंग फर्म सेडलर के फिलिप सेडलर ने इस दुर्घटना की प्रारंभिक जांच की थी !

क्रिस ब्रायसन और जोयल ग्रिफिथ्स को उनका एक रिकॉर्डेड टेप इन्टरव्यू हाथ लग गया था !

जिससे उन्हें इस दुर्घटना की विस्तृत जानकारी मिली !

इस दुर्घटना से मेनहटन प्रोजेक्ट और फैडरल सरकार बहुत चिंतित थी !

उनकी बहुत छीछालेदर हो रही थी !

वे पूरे मामले को दबा देना चाहते थे !

क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि किसी भी वजह से एटमबम बनाने के कार्यक्रम में कोई भी अड़चन पैदा हो !

             परिणामस्वरूप कई किसान उनके खेतों के प्रदूषित हो जाने के कारण मेनहटन प्रोजेक्ट और सरकार के एटम बम कार्यक्रम के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ना चाहते थे !

लेकिन वे युद्ध खत्म होने की प्रतीक्षा कर रहे थे !


उधर पेंटागन ने इस का मुकाबला करने (और बम कार्यक्रम की गोपनीयता बनाए रखने हेतु) फ्लोराइड को षड़यंत्रपूर्वक ‘हितैषी’ या "मानव अनुकूल" परिभाषित करने की व्यापक योजना बनाई ! पुराने वर्गीकृत दस्तावेज साफ साफ दर्शाते हैं कि स्थानीय लोगों को फ्लोराइड के डर से उबारने के लिए दांतों के स्वास्थ्य में फ्लोराइड की उपयोगिता पर कई व्याख्यानों का आयोजन किया गया था और इन सबमें मीडिया का भरपूर सहयोग लिया गया !

यह सब मेनहटन परियोजना के फ्लोराइड विषविज्ञानी और प्रोजेक्ट अधिकारी हेराल्ड सी. हॉज की दिमागी उपज थी ! द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होते ही हॉज ने अपने बॉस और मेडीकल डिविजन के चीफ कर्नल एल.वॉरेन को इस दुर्घटना की पूरी जानकारी देने हेतु प्रतिवेदन भेजा !


आपको इस आर्टिकल को मानना जरूरी नहीं एवं इसकी सत्यता अपने दृष्टिकोण से चेक कर सकते हैं।

*टूथपेस्ट बनाने वाली कम्पनियां बड़ी चालाकी से अपने डिब्बी के ऊपर बहुत छोटे शब्दों में लिखती हैं ताकि इसे आसानी से न पढ़ा जा सके।*

*इस सत्यता को जानने के अभी और इसी वक्त अपने टूथपेस्ट को चेक कर सकते हैं.!*

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*"आओ लौट चलें हम : टूथपेस्ट से अपने देसी आयुर्वेदिक पेस्ट या दन्तमंजन या दातून की ओर"*

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तोता पालने पर जेल जाओगे , कैद में रखना crime, Parrot Caging

  Crime Under Section 49,51 Of  Wild Life Protection act  तोता पालना तो देश में कॉमन है, ऐसे में उसको पिंजड़े में रखना भी अपराध है? वाइल्डलाइफ एक्ट के मुताबिक,  तोते या किसी अन्य पक्षी को पिंजड़े में कैद करके रखना और उससे किसी भी तरह का लाभ लेने के लिए प्रशिक्षण देना कानूनन अपराध है । भारत में कानून इजाजत नहीं देता कि किसी भी पक्षी को कैद करके रखा जाए। आम तौर पर नागरिक तोतों को पालतू पक्षी मानते हैं लेकिन वन्यजीव अधिनियम 1972 की धारा-4 के तहत इसे या किसी भी अन्य पक्षी को पिंजरे में कैद रखना या पालना गैरकानूनी है। वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत तोता को पालना या पिंजरे में कैद करना दंडनीय अपराध है। यदि किसी व्यक्ति ने तोता पाल रखा हो या उसे पिंजरे में कैद रखा हो तो वन विभाग के नजदीकी कार्यालय में सुपुर्द कर दें। देश भर में तोतों की करीब एक दर्जन प्रजातियां मौजूद हैं और सभी संरक्षित हैं। नियमानुसार तोतों को पालने के लिए वन विभाग की अनुमति जरूरी होती है, लेकिन उन्हें पिंजरे में बंद करने वाले यह अनुमति नहीं लेते हैं। लोग शौकिया तौर पर पिंजरों में रंग-बिरंगे पक्षियों को घरों में

Mehandipur Balaji Trustee Mobile Number

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Judges की salary और सुविधा देख कर चौक मत जाना, चेहरा देख कर न्याय करते है ऐसा नेताजी कहते है

  District SESSION Judges और JMFC को जनता के पैसों से ढेरो सुविधा, क्या ये रेवाड़ी नही है? मोटी सैलरी फिर भी ढेरो सुविधा। जनता को free बिजली मुफ्त की रेवाड़ी है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के judges को और जायदा मिलती है सुविधा। अब यह बताएंगे की जनता को क्या discount में मिलना चाहिए। What are the salaries and perks you are entitled to at each stage as a judge judiciary exams This is a question many judiciary aspirants have.  In addition to the obvious status that judges enjoy in the society in general and the legal community in particular, you must know the kind of financial benefits you are likely to get after putting in those gruelling hours of efforts.  We have compiled some interesting information about this as under: Salary In February 2020, the Second National Judicial Service Commission issued a revised pay for all the judicial officers in lower judiciary which introduced salary pay which was three times the current pay.  Following table would tell you how much the judges in the